Thursday, December 15, 2011

जोगेश्वर दयाल...


    उनका नाम जोगेश्वर दयाल हैं वो खिचरिपुर मैं 176/7 मैं रहते हैं, उम्र करीब 38 साल की होगी | जोगेश्वर दयाल जी को खिचरिपुर मैं बहुत लोग जानते हैं | उनकी खिचरिपुर बाल्मिक रोड पर, मंदिर के पास, समोसो की छोटी सी रेड्डी हैं जिसे वो यही तीन सालो से लगाते आ रहे हैं | वो यहाँ के लोगो के बीच मैं बहुत मशहूर हैं, उनके लोगो के बीच मैं मशहूर होने की वजह उनके यहाँ हमेशा मिलने वाले ताजा व गरम समोसे हैं | वो हमेशा लोगो को समोसे वगेहरा गरम-गरम ही बना कर दिया करते हैं और जितना बीके उतना ही बनाते हैं | उनका आस–पास की दूकान से भी रिश्ता बहुत ही सुलझा और अच्छा हैं, क्योकि वो बहुत ही नरम स्वभाव के शख्स हैं | आस–पास की दुकानों पर फुर्सत में अक्सर बतियाते दिखाई देते हैं | सुबह 9 बजे से शाम को 6 बजे तक उनका ठिकाना हमेशा उनकी यह दूकान ही होती हैं, जहा वो अक्सर मिल जाया करते हैं |  

   जब इस तरह की झलक हमें अपने आस पास दिखाई देती हैं तो एहसास होता हैं की जिस तरह कोई जगह हमारे वजूद को बना रही हैं जहाँ से हम जाने जाते हैं, वैसे ही हम भी किसी जगह की पहचान को रोज में ताजा करते हुए जी रहे हैं |

ईशा-इशिका 
खिचरिपुर 
लर्निंग कलेक्टिव...

Tuesday, October 11, 2011

जगह वो जिसे सब जानते हैं।. . .


सागर फोटो वाले की दुकान
  हम सागर फोटो वाले की दुकान पर फोटो खिचवाने जाते हैं। क्योकि उसकी दुकान पास में हैं। दुकान पर बहुत सारी फोटो टंगी रहती हैं। कुछ छोटी तो कुछ बड़ी। अंदर एक छोटा सा कमरा भी हैं। जहां वो अपने कैमरे से तस्वीर खिचता हैं। वहाँ अलग-अलग तरह के पर्दे भी लगे हैं, “पेड़ वाला, सूरज वाला,सिंदरी वाला”। मुझे वो कमरा बहुत ही अच्छा लगता हैं। वो दुकान पास में ही हैं मैं वहाँ अकेले भी चली जाती हूँ। हमारे यहाँ उसके अलावा कोई और फोटो की अच्छी दुकान नहीं हैं। मुझे तो वही दुकान पसंद हैं। इसलिए हम वहीं फोटो खिचवाने जाते हैं। 

सिमरन



 
  हम फोटो सागर फोटो वाले के यहाँ खिचवाते हैं। क्योकि वो दुकान पास में हैं और उसके अलावा कोई और दुकान नहीं हैं और वो फोटो भी अच्छी खिचते हैं। पैसे भी बाकी लोगो से कम लेते हैं। वो जगह भी बहुत अच्छी हैं। वहाँ हम अकेले भी चले जाते हैं, पर ज्यादातर अकेले कम ही जाते हैं। सागर की दुकान बहुत सुंदर दिखाई देती हैं। क्योकि उसकी दुकान में हर तरफ बहुत सारी फोटो लगी हुई हैं। मैं जब पहली बार वहाँ जब गई तो दुकान वाले भईया ने मुझसे पूछा क्या काम हैं? इसके जवाब में मेंने कहा फोटो खिचवानी हैं। वो मुझे अंदर वाले कमरे में ले गए। अंदर गई तो देखा की अंदर बहुत अच्छे-अच्छे पर्दे लगे हुए थे और दो तीन मशीन भी थी अंदर। मैंने वहाँ से अपने स्कूल में देने के लिए फोटो खिचवाई और घर चले गई और दो तीन दिन बाद फोटो मिली तो देखा फोटो बहुत सुंदर आई हैं।

ईशिका

Saturday, September 10, 2011

बेखौफ रात...


  जो रात रोज़ाना एक डर के साथ जन्म लेती है| जहां लोग दिलो में रात का खौफ़ लिए जीते है| जहां अंधेरा बढ़ते-बढ़ते ओर रात के गहरे होते-होते सब अपने-अपने घरो मे नज़र आते है| बस शहर के इस कौने में ये तीन शख्शियत ही जागती हुई नज़र आती है “चौकिदार, चौर, पुलिस” या वो जिनके आशियाने ये रास्ते ही है|
  पर जनमाष्टमी के इस मौके पर जैसे रात ने अपने होने के दायरे मे छूट कर दी थी| जिस समय रोज़ाना 9-10 बजते-बजते सभी अपने-अपने घरो में होते है| वही आज सडको पर कृष्ण लीला का नजारा देखने लोगो की भारी संख्या दिखाई दी जिनमे औरते भी बेखौफ थी| जहां रात के पहले पहर तक सभी सडको पर मूस्तैद थे| यहाँ की जन्माष्टमी एक दिन की रामलीला की तरह ही होती है| सभी अपनी-अपनी जगह एक किरदार का रूप लिए लोगो को लुभाने तैयार थे| हर जन्माष्टमी को ऐसे सजाया गया जैसे की हम किसी म्यूजियम या मेले मे लगने वाले गोस्ट-हाउस मे गए हो| हर जगह की जनमास्टमी अपने लिए अलग थी| जिसका मजा सभी ले रहे थे| लोगो को इतनी रात तक इन सडको पर देख ऐसा लगा जयसे के आज के दिन ने सभी को बेखौफ रात के पहले पहर तक जागने वाली रात दी हो| मगर रात के इस पहले पहर के बाद ये खौफ दौबरा खिचड़ीपुर खाली होते-होते लौट आया|

Friday, August 26, 2011

दिन ढलते-ढलते ...


दिन ढलते-ढलते ...
  खिचड़ीपुर की रात भी वो रात है जो सभी के दिन का अंत होती है| पर यह रात कभी थकान मे नहीं दिखती, यहाँ के लोग इसे जगाए रखते है| पर सबके बीच ये रात एक डर लिए जरूर जागती है| खिचड़ीपुर मे अंधेरा होते ही रात की रोनक और चहल-पहल दिन से तेज़ हो जाती है| लोग यहां इस दौरान दिन से ज्यादा दिखाई व सुनाई देते है| जो लोग इस दौरान खिचड़ीपुर की रोनाक को ताजा करते हुये महफिल मे मूस्तेद ओर शरीक होते हुये दिखाई पढ़ते है| वे वो लोग होते है जो दिन मे किसी ओर जगह मे शामिल होते है, अपने काम के साथ और अंधेरे के शुरू होने से लेकर अंधेरा हो जाने तक अपनी-अपनी टोलियो मे यहां-वहां हर जगह मे शरीक नज़र आते है| पर ये अंधेरे भरी रात रोज़ाना हर किसी के बीच एक डर छोड़ती हुई जीती है| जो इस जगह को समय के साथ अंधेरा बढ़ते-बढ़ते खाली कर देती है| आखिर मे रह जाते है तो सिर्फ वो जिनकी दुनिया रात से ही शुरू होती है|