Tuesday, March 15, 2011

गली की पहचान...

    नज़रो को बड़ा कर जब वो किसी को देखते तो, गली के अन्दर क्या बहार क्या, जो जैसा खड़ा होता या बैठा होता वो वैसा का वैसा ही रह जाता। फिर किसी कि हिम्मत ना होती की ज़रा सा भी उससे कुछ पुछ ले। बस चेहरे पर एक सिकन्द सी छा जाती कि कही ज्यादा गुस्सा ना हो जाये ये शख्स।



    6 नम्बर की उस गली में कदम रखा ही के चारो तरफ से घुरते हुए उस आवाज़ के झुन्ड़ ने झुन्झला सा दिया। अवाज़े ऐसी रोबदार के अच्छा खासा खड़े-खड़े ड़र से कापने लगे। फिर इस आवाज़ की गहराई चिल्ला-चिल्ला कर जैसे इस गली में अन्जानापन सा दर्ज कर जाती। उस आवाज़ का हर शब्द उस अन्जाने शख्स से जैसे उसके इस गली में आने कि वज़ह पुछती"क्योँ आये हो क्या करने आये हो”।



    ना जाने उस आवाज़ ने कितनो को ड़राया होगा, यह कोई नही जानता। वो आवाज़ एसी कि उस आवाज़ के आगे बाकि आवाज़े आपना वजुद सा खो देती। फिर अक्सर इस थोड़ी देर के पल के बाद वही खड़े लोग या तो उस अन्ज़ान को समझाने लगते की यहाँ ध्यान से आया करो। यह हमारी गली के रखवाले हैं। या उस शख्स को प्यार से अपने पास बैठा, कुछ ड़राने वाले ठंग से इन रखवालो के किस्से सुनाने बैठ जाता। एक अजीब तरीके से जैसे सावधान भी करते, कि अगली बार कुत्ते वाली गली में ऐसे ही मत आ जाना। कही तुम्हे चोर समझ लिया तो...



    कई अवाज़ो में एक एसी आवाज़ होती हैं जो आपको बाकि जगहो से अपनी तरफ खीच लेती हैं। यह घुर्राने वाली आवाज़ भी इस गली को जैसे पहचान देती हैं। आस-पास के लोग इस गली को बखुबी ही पहचानते हैं। इन रखवालो के दिन भर के भौंकने की गुंज ने भी अपनी पहचान बनाई हुई हैं। लोग इन आवाजो कि गुंज में शामिल होकर किसी के साथ हुई किसी घटना का जिकर भी कर देते हैं।