Sunday, June 19, 2011

जगह


     अक्सर ही वहां किसी ना किसी जाने-पहचाने कुछ आन्जानो की आवाज़ सुनाई देती। जैसे कभी बच्चो कि तो कभी औरतो कि, उनकी इस आवाज़ से में परेशान हो सोचने लगी कि "क्या इन्हे कही ओर जगह नही मिलती"। ये सब घर के नीचे बैठकर ही इतनी आवाज़ करती रहती हैं। पर न जाने उनकी आवाज़ और उनकी बातो में कैसा जादु हैं कि उनकी बाते मुझे उनकी तरफ आकर्षित कर ही लेती हैं। कभी तो वो अपने बच्चो की तो कभी खुद की बाते करती। उनकी इस बात से में उनकी तरफ आकर्षित हो जाती। और उनके साथ बैठ जाती। उनकी बाते सुनकर मेरा टाईम भी पास हो जाता। मगर जिस दिन वो नही आते तो पुरे दिन निगाहे उनका इन्तेजार करती। और बेसबरो की तरह नीचे जाने कि सोचती रहती। सोचती वो सभी जल्दी से आ जाये। जगह हर बार एक सी नही होती। जगह बदलती रहती हैं। 
प्रतीक

Friday, June 17, 2011

खास जगह...



    जगह कुछ एसी बन जाती हैं जिनसे हमारा ताल्लुक जुड़ जाता हैं। रोज़ कि इस भागती दौड़ती इ जिन्दगी में बहुत कम लोग जगह पर ध्यान दे पाते हैं, कभी कभी तो एसा लगता काम करके कुछ ज्यादा ही थकावट हो जाती तो थकावट के कारण मैं एक जगह टिक कर बैठ जाती लेकिन कभी नही सोचा था कि जगहो से रिश्ते भी जुड़ जाते हैं। 
 
एक बार मेरे नाना के दोस्त आलम भाई साहब घर आये और घर के दाये तरफ के पलंग पर बैठ गये और नज़म गाने लगे। पहले तो किसी ने इस बात पर गौर ही नही किया। लेकिन जब वो रोज़ अकर नज़म गाते तो सभी बड़े ही चाव से सुनते और उनकी तारिफ करते। हम सभी लोगो को उनकि गाई हुई नज़म बहुत ही अच्छी लगती हर शाम हम उनका और उनकी नज़म का इन्ते जार करते। वो भी आतते ही अपनी नज़म गुनगुनाने लगते। सुनकर सभी यह कहते कि उनकी आवाज़ में जादु हैं जो उनकी नज़म सुनने के लिये हमे बैचेन करता हैं। मैं रोज़ उनका जलपान भी अच्छे से कराती तो वो मुझे दुआये देते। उन्होने सभी का दिल जीत लिया था। पर एक दिन एसा आया कि हम उसी जगह पलंग बिछा कर उनका इन्तेजार करते रह गये मगर वो आये ही नही। हम सभी कि नज़र उसी जगह गड़ी रही रहती। लेकिन शाम से रात हो गई चार दिनो तक वो नही आये। सभी उना चेहरा तक नही देख पा रहे थे। हरपल उनका इन्तेजार सा रहता। मैं भी मन ही मन सोचती रहती थी कि वे कब आयेंगे। और उनकी नज़म हमे सुनने को मिलेगी। पड़ोसी भी आते और पुछते कि आलम भाई साहब का कोई समाचार मिला कि वे कब आ रहे हैं। जिस जगह वो आकर बैठते वो जगह तो हमारे लिये खास बन चुकि थी। एक अजीब सा रिश्ता जुड़ गया था। जब तह सब जाना तो लगा सचमुच जगह से भी यादे जुड़ जाती हैं वह जगह अपनी सी लगने लगती हैं। वैसे ही उस जगह की याद ने उस जगह को मेरे और आसपास वालो लिये खास बना दिया था। 
काजोल