Thursday, July 28, 2011

पेड़ो के बदलते चेहरे...






    पेंड़ हमारी जिन्दगियों में एक किरदार की तरह हैं। कभी इन्हे मान्यताओ में देखा जाता तो, कभी ये लोगो की जिन्दगियों में बदलते चेहरे लिये उतरते हैं, एक बैठक वाली जगह जहां तसल्ली से कुछ देर बैठ गुफतगु की जाती हैं, गर्मियों में वो जगह बन जाती हैं जहां घर के कपड़े सुखाने के लिये रस्सीयां बांध दी जाती हैं। वो जगह जो किसी के लिये सकुन कि जगह बनती हैं तो किसी के लिये गुफतगु कि, तो कोई पेड़ो को अपने रोज़ाना के कामो में ढाल लेता हैं। पर इनके आस पास एक महफिल नुमा हजुम हमेशा देखा जाता हैं। हम अपनी मान्यताओं के साथ आज भी त्यौहारो में इनके आस-पास एक महफिल सजाये दिखते हैं, त्यौहारो में इन पर चढ़ावा, जल चढ़ा कर जैसे इन्हे खुबसुरत बना देते हो, सावन के दिनो में लोग इन पर झुले डाल इसके आस-पास खेलते-कुदते दिखाई देते हैं। ये जगह ही वो हैं जो अनगिनत चहरो के बदलाव के साथ हमारी बीच हमेशा दिखती हैं। आज ये पेड़ किसी जगह में सिर्फ मन्नतो का पेड़ नही हैं। बल्की आज ये लोगो के बीच हर मोड़ पर बदल जाने वाले उन चेहरो की तरह हैं जो एक जगह बनाता हैं। और ये जगह हमेशा हम सबके बीच एक न्यौते में होती हैं।