Saturday, January 21, 2012

जैसे रोजाना सब नया सा हो...


  शहर की कोई रात आवारा नहीं, बल्कि यह रात अपने में बहुत कुछ लिये हुये है।रात किसी का यही आवारापन समेटे हुये है जीना चाहती है। यहां से कोई अपने आपको किसी street lamp की परछाई में अपने अक्स के सहारे बढ़ता देखना चाहता है। ऐसा जब दिखता हैं तो लगता हैं कि कोई उस दौरान अपने आपको बहुत आगे के सफ़र में सोचने के लिये इस रात में किसी जगह के ठहराव में है।ये ठहराव रात के साथ रोजाना शामिल होकर उसमे रोजाना नई जान भर देता हैं, जैसे रोजाना सब नया सा हो....