Saturday, September 10, 2011

बेखौफ रात...


  जो रात रोज़ाना एक डर के साथ जन्म लेती है| जहां लोग दिलो में रात का खौफ़ लिए जीते है| जहां अंधेरा बढ़ते-बढ़ते ओर रात के गहरे होते-होते सब अपने-अपने घरो मे नज़र आते है| बस शहर के इस कौने में ये तीन शख्शियत ही जागती हुई नज़र आती है “चौकिदार, चौर, पुलिस” या वो जिनके आशियाने ये रास्ते ही है|
  पर जनमाष्टमी के इस मौके पर जैसे रात ने अपने होने के दायरे मे छूट कर दी थी| जिस समय रोज़ाना 9-10 बजते-बजते सभी अपने-अपने घरो में होते है| वही आज सडको पर कृष्ण लीला का नजारा देखने लोगो की भारी संख्या दिखाई दी जिनमे औरते भी बेखौफ थी| जहां रात के पहले पहर तक सभी सडको पर मूस्तैद थे| यहाँ की जन्माष्टमी एक दिन की रामलीला की तरह ही होती है| सभी अपनी-अपनी जगह एक किरदार का रूप लिए लोगो को लुभाने तैयार थे| हर जन्माष्टमी को ऐसे सजाया गया जैसे की हम किसी म्यूजियम या मेले मे लगने वाले गोस्ट-हाउस मे गए हो| हर जगह की जनमास्टमी अपने लिए अलग थी| जिसका मजा सभी ले रहे थे| लोगो को इतनी रात तक इन सडको पर देख ऐसा लगा जयसे के आज के दिन ने सभी को बेखौफ रात के पहले पहर तक जागने वाली रात दी हो| मगर रात के इस पहले पहर के बाद ये खौफ दौबरा खिचड़ीपुर खाली होते-होते लौट आया|