Friday, January 28, 2011

Introduction...



   दिल्ली के छोर में बसे शहरों में से एक शहर खिचड़ीपुर भी हैं। खिचड़ीपुर सन् 1975-76 में बसना शुरु हुआ था। भौगोलोक दृष्टि से इसका आकार दिल्ली के नक्शे में किसी छोटे-से गमले के समान हैं। इसका एक किनारा कल्याण पुरी से सटा हुआ हैं तो दुसरा किनारा गाजीपुर से। खिचड़ीपुर के बांयी ओर एक बड़ा-सा नाला हैं, इसे गाजीपुर से अलग करता हैं। तो एक बड़ा सा पुल खिचड़ीपुर और गाजीपुर को आपस में जोड़ता भी हैं। जिसे देखना अपने में भव्य नज़ारा हैं।

   कल्याणपुरी, विनोद नगर, मयूर विहार, त्रिलोक पुरी, शशि गार्डन आदि इसके आस-पास की बसी हुई कलोनियां हैं। 
 
   यहाँ के रहने वालो के अनुसार यह जगह जंगल जैसी हुआ करती थी, और ढेरो किकर के पेड़ और छः कुए भी हुआ करते थे। सरकार ने इस जगह को खरीदकर एक कलौनी का रूप दे दिया, जो आज खिचड़ीपुर के नाम से जाना जाती हैं। यहाँ पर बसने वाले लोग मूल रूप से उतर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और दिल्ली के आस-पास की जगहो से ही हैं।

    इस जगह को चार मशहुर और अहम हिस्से मिलकर खिचड़ीपुर बनाते हैं, टी-कैम्प, इन्द्राकैम्प, खिचड़ीपुर गाँव और खिचड़ीपुर। इन्ही चारो जगहो का मिला जुला चहरा ही खिचड़ीपुर हैं। इन ठिकानो की अपनी अपनी विशेशता भी हैं, जैसे इन्द्राकैम्प में दाखिल होने और निकलने के लिये 16 गलियां हैं। इसलिये लोग इसे 16 गलियो वाली जगह के नाम से भी पुकारते हैं। तो टी-कैम्प की बनावट और वहां की गलियां और घर बहुत ही छोटे हैं, और आमने -सामने के घरो का बंटवारा छोटी छोटी नालियों ने कर रखा हैं। घर12 गज़ के हैं, तो गलियां तंग गलियों का सफ़र लगती हैं। जहाँ से एक साईकिल को भी नही निकाला जा सकता। यह कलौनी सन् 1986 में बसी थी और यहाँ ए से पी तक ब्लॉक हैं, और एक तरफ 252 घर हैं तो दुसरी तरफ 234 घर हैं ये 486 आशियाने मिलकर टी-कैम्प बनाते हैं। खिचड़ीपुर गाँव तो, आज भी अपना अलग वजुद लिये जी रहा हैं। यह जगह गाँव की झलक लिये हुये हैं, यहाँ का पहनावा गाँव के पहनावे की तरह हैं, आस पास की जगहों में तबैले और उपले दिखाई देते हैं, और निगाहो के सामने बड़ी-बड़ी पुशतैनी हवैलियां हैं, और लोगो की सवारियां भी ट्रैक्टर हैं। इस जगह ने भी शहर के साथ तब्दिलियां की पर अपना तस्विर नही बदला। इसके अलावा खीचड़ीपुर में एक से दस तक ब्लॉक हैं और हर ब्लॉक के आशियानो की संख्या पाँच-सौ से छः-सौ के आस-पास हैं।

   यह जगह अपने परिवेश का एक जीवंत उदाहरण हैं। आज भी इन्द्राकैम्प की सोलह गलियों के भीतर बने घरो के बाहर मिट्टी के बने हुए चुल्हे गांव की झलक ले आते हैं। तो वही दोपहर के समय छुट्टी के बाद स्कुल से निकलते ढेरो साथी आने वाली तस्वीर का रूप भी लिये रहते हैं। त्यौहारो का उल्लास, उत्सव तो देखने लायक होता हैं। शादी विवाह जैसे अवसरों पर परम्पराओ और रीतियों की हर कड़ी साफ़ तौर पर दिखती हैं।

   अपने हुनर और खासियतो के चलते इस जगह में गति रहती हैं। यह गति हर रात को सवेरे के इन्तेजार में तैयारी करती हैं। यहाँ के लोगो के लिये हर सुबह के मायने अलग जो रहते हैं।

   ये तो अभी शुरूवात थी खिचड़ीपुर को जानने की। हम खिचड़ीपुर के एसे ही कई मजेदार किस्से कहांनियो के साथ एसे ही बने रहेंगे। तो देखते हैं खिचड़ीपुर पहले, आज और कल...

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