Sunday, June 19, 2011

जगह


     अक्सर ही वहां किसी ना किसी जाने-पहचाने कुछ आन्जानो की आवाज़ सुनाई देती। जैसे कभी बच्चो कि तो कभी औरतो कि, उनकी इस आवाज़ से में परेशान हो सोचने लगी कि "क्या इन्हे कही ओर जगह नही मिलती"। ये सब घर के नीचे बैठकर ही इतनी आवाज़ करती रहती हैं। पर न जाने उनकी आवाज़ और उनकी बातो में कैसा जादु हैं कि उनकी बाते मुझे उनकी तरफ आकर्षित कर ही लेती हैं। कभी तो वो अपने बच्चो की तो कभी खुद की बाते करती। उनकी इस बात से में उनकी तरफ आकर्षित हो जाती। और उनके साथ बैठ जाती। उनकी बाते सुनकर मेरा टाईम भी पास हो जाता। मगर जिस दिन वो नही आते तो पुरे दिन निगाहे उनका इन्तेजार करती। और बेसबरो की तरह नीचे जाने कि सोचती रहती। सोचती वो सभी जल्दी से आ जाये। जगह हर बार एक सी नही होती। जगह बदलती रहती हैं। 
प्रतीक

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