Friday, June 17, 2011

खास जगह...



    जगह कुछ एसी बन जाती हैं जिनसे हमारा ताल्लुक जुड़ जाता हैं। रोज़ कि इस भागती दौड़ती इ जिन्दगी में बहुत कम लोग जगह पर ध्यान दे पाते हैं, कभी कभी तो एसा लगता काम करके कुछ ज्यादा ही थकावट हो जाती तो थकावट के कारण मैं एक जगह टिक कर बैठ जाती लेकिन कभी नही सोचा था कि जगहो से रिश्ते भी जुड़ जाते हैं। 
 
एक बार मेरे नाना के दोस्त आलम भाई साहब घर आये और घर के दाये तरफ के पलंग पर बैठ गये और नज़म गाने लगे। पहले तो किसी ने इस बात पर गौर ही नही किया। लेकिन जब वो रोज़ अकर नज़म गाते तो सभी बड़े ही चाव से सुनते और उनकी तारिफ करते। हम सभी लोगो को उनकि गाई हुई नज़म बहुत ही अच्छी लगती हर शाम हम उनका और उनकी नज़म का इन्ते जार करते। वो भी आतते ही अपनी नज़म गुनगुनाने लगते। सुनकर सभी यह कहते कि उनकी आवाज़ में जादु हैं जो उनकी नज़म सुनने के लिये हमे बैचेन करता हैं। मैं रोज़ उनका जलपान भी अच्छे से कराती तो वो मुझे दुआये देते। उन्होने सभी का दिल जीत लिया था। पर एक दिन एसा आया कि हम उसी जगह पलंग बिछा कर उनका इन्तेजार करते रह गये मगर वो आये ही नही। हम सभी कि नज़र उसी जगह गड़ी रही रहती। लेकिन शाम से रात हो गई चार दिनो तक वो नही आये। सभी उना चेहरा तक नही देख पा रहे थे। हरपल उनका इन्तेजार सा रहता। मैं भी मन ही मन सोचती रहती थी कि वे कब आयेंगे। और उनकी नज़म हमे सुनने को मिलेगी। पड़ोसी भी आते और पुछते कि आलम भाई साहब का कोई समाचार मिला कि वे कब आ रहे हैं। जिस जगह वो आकर बैठते वो जगह तो हमारे लिये खास बन चुकि थी। एक अजीब सा रिश्ता जुड़ गया था। जब तह सब जाना तो लगा सचमुच जगह से भी यादे जुड़ जाती हैं वह जगह अपनी सी लगने लगती हैं। वैसे ही उस जगह की याद ने उस जगह को मेरे और आसपास वालो लिये खास बना दिया था। 
काजोल
 

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