Saturday, June 2, 2012

Riyaaj jo aapke karne dar karne se gehrata jaata hai.



    सभी आज समुह के पायदान को छौड़ते हुये समुह से बाहर निकल आये।सभी को बस स्टैन्ड पर जाकर आज कि परैक्टीस करनी हैं।समुह से निकलने के पर जहां एक तरफ मेरे खुद के कदम खिचड़ीपुर से यहां के पास के स्टैन्ड तक पहुँचने में 15 से 20 मीनट के दायरे को रोजाना बुन लेते हैं, वहीँ इन नन्हे कदमो ने इस दायरे को अपनी जगहो को निहारते हुये चलने के साथ फुरसत में चलने में लाते हुये लम्बा कर दिया था। देख वो मेरा स्कुल हैं, मै इस जगह को जानती हुँ, मेरे पापा एक दिन मुझे इस रास्ते से लाये थे, हम रोजाना इसी रास्ते से स्कुल आते हैं। वो देख इस दुकान से मेरी मम्मी हमारे लिये कपड़े लेती है। देख यहां दुध कि दुकान भी हैं। सभी इन जगहो को अपने बतलाने से दोहराने तक लेकर आ रहे हैं। और सभी सेन्टर और स्टैण्ड के बीच की जगहो को ऐसे निहारते चल रहे थे, जैसे मानो पहली बार देखा हो या अपना देखा जाना हुआ आज दोस्तो को बताने, दिखाने का आज मौका मिला हो।

    अपनी बातो से स्टैण्ड पर पहुँचने तक के फासले को कम करने कि कौशिशो में दिख रहे हैं। लगता हैं ये कौशिशे आज सारी बातो को यहां जगह देगी। जहां उनका ये पहुँचना, उनको एक तरफ बातो का मौका भी दे रही हैं, तो दुसरा कही पहुँचने के सफ़र को, हल्का करने का रास्ता भी दिखा रहा हैं। बाते समय बिताने से अलग महत्व रखती हैं आज किसी एहसास में हैं। अगर उन्हे बदलाव में रहकर सोचा जाये तो जहां इन बातो ने यहां किसी के सफ़र को हल्का कर दिया तो कहीं न कहीं ये बाते किसी के लिये अपने आपको खोल पाने का जरियां होती हैं।

    बाते, निहारना, बताना, दिखाना इसके साथ होते हुये चलना हमको स्टैण्ड तक ले आया सभी को जगहो में अलग-अलग शामिल कर दिया गया,कोई कही तो कोई कही। पुजा मुंगफली वाले कि दुकान पर अपनी निगहो को तेज करती हुई शामिल हो गई, काज़ल किसी कि खाट पर बैठ आस-पास को निहारने लगी, ऐनीका और स्नेहा किसी कि दुकान के बाहर कि जगह कि जगह कि शिरकत में जुड़ गये और अने देखने सुनने के साथ वहां जो हो रहा हैं उसे अपनी कॉपी में दर्ज करने कि कौशिशो में लग गये। ये सभी स्टैण्ड के आस-पास कि जगह ही हैं सभी अपनी-अपनी जगह से ही स्टैण्ड को देखने, लिखने मे शरिक हैं। आती जाती बसे, समने वाले साथी को कभी अपनी आड़ में छुपा लेते तो कभी दौबारा नज़रो के सामने बैठने के नये अन्दाज में नज़रो के सामने ले आते। बसे लगातार आती-जाती कभी कतार में आकर जुड जाती तो कभी कतार से बाहर निकल जाती। उन सभी बसो पर लिखे नम्बर और नाम"306 नेहरू प्लैस, 309 आनंद पर्वत, 364 लाजपत नगर, 344 हौज खासकिसी न किसी जगह के जुडाव को हमारे जगह के साथ के जुडाव को दिखा रहे हैं। कोई वक्त से पहले ही बसो में अपनी जगह मुलतबी करता दिख जाता तो कोई भागता हुआ बस को पकडने कि कौशिश करता। ये सभी वो झलकियां हैं जो स्टैण्ड के आस-पास कि हैं इसके परे कुछ चेहरे वो हैं जो इन झलकियो को ध्यान से निहारने और अपनी आँखो से इन छवियो को कैद करने में लगे हैं।
 

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