खिचड़ीपुर की गलियो में अब गर्माहट हर जगह नजर
आने लगी हैं। जो महफिले बनती है, बातो के मौके में होती है, यही आस-पास की तस्वीरे अब कुछ इस तरह की तब्दीलियों में शामिल हैं। सभी
आते-जाते गरम कपड़ो मे लिपटे नजर आते है जैसे कपड़े शरीर से चिपक गए है और छौड्ने का
नाम नहीं ले रहे। रोजाना के कपड़ो पर चड़ा हुआ स्वेटर, पैरो को
ठंडक से छुपते जुराब, नंगे हाथ जो पेन्टो को ज़ेबो में पनाह
ले चुके है और एक शौल जिसमे अपने आपको लपेटा हुआ है। सभी के सभी पलंग के नीचे रखे
पुराने बक्से से बाहर निकाल लिए है। मुंह से सिगरेट के धुए की तरह धुआँ निकालने का
खेल बरकरार है, जब भी कई मुह से हवा बाहर छौड़ता तो सिगरेट से
निकालने वाले धुए की तरह ऑस मुह से बाहर निकलती, जिसको बच्चो
ने अब अपने खेल का हिस्सा बना लिया है। गलियो में रोजाना दाखिल होने वाले फेरि
वालो की शिरकत भी बदली सी नजर आ रही है जो इस सर्द मौसम के शुरू होने का एहसास
छौड़ती हुई गलियो में घूमते हुये गलियो से निकाल जाती है, अब
वो फल-सब्जी, चादर-पर्दे छौड़कर कंबल-रज़ाई, दस्ताने-जुराब, गज़क-मूँगफली बेचते नजर आते है। औरते
की महफिले घर के बराँदे छौड़ हाथो मे उन का गोला और सिलाई की डंडी लिए धूप की तलाश
में पार्को में जमी नजर आती है। गली की आवाजही दिन होते-होते गलियो में जहा तेज हो
जाती है तो वही शाम होते-होते हल्की पढ़ती नजर आती है। रात को ठिठुरते हाथो के साथ
दोस्तो की टोलियो को जमाये लड़के यहाँ-वहाँ नजर आते है, शायद
इस ठिठुरन को आपसी बातो से बांटने, छुपने या कम करने की
कौशिशों में है। घरो या दुकानों के आगे सुलगती अंगेठिया महफिले बनाने में जुट गई
है जहां पूरे दिन की गुफ्तगू भी होती है और मस्ती भी। हाथ अंगेठी की गर्माहट को
सेकते-सेकते काले पढ़ने लगे है पर इस महफिल और बातों के करवाह में इसे इग्नौरे कर
दिया जाता। हर कोई आंग को देर तक जलाने की कौशिश और देर तक बैठने की चाहत में मौका
पढ़ते ही जलती आंग में एक लकड़ी और डाल देता।
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