Tuesday, May 24, 2011

राज जो चुप्पी लिए हुए था

दोपहर का समय होगा। सूरज सिर पर था। पीठ पर स्कूल का बैग टाँगे, हाथों में पानी की बोतल लिए, एक जैसे कपड़े पहने आपस में बातें करते हुइ दो नन्हे साथी अपने स्कूल के रास्ते को आँक रहे थे। चलते-चलते उनके पैर वही ठिठक कर रुक गए। 

एक साथी दूसरे साथी से पूछा,  "यार, यहाँ पर आज इतनी भीड़ क्यों है?" कुछ देर तक दोनों साथी आपस में बतियाते हुए उस भीड़ को निहारते रहे। दूसरा दोस्त पहले वाले से बोला, "चल यार, देर हो रही हैं। कोई मर-वर गया होगा।”

इतना कहते-कहते दोनों साथी स्कूल की ओर चल दिए। तभी उनके पीछे से दो-तीन लड़कों की एक टोली उसी अन्दाज में वहीं उस भीड़ के पास आकर रुकी। फिर थोड़ा आगे जाकर खड़ी हो गई। सभी आपस में बातें करने लगे। 

उनमें से एक साथी बोला, "अबे मुझे पता हैं ये लोग क्यों ऐसे खड़े हैं। पता हैं... कल मेरे पापा के ही सामने यहां पर पुलिस आई थी और कुछ लोगो को यहां से पकड़ कर ले गई थी। इसलिए आज सब यहां चुप्पी मारे खड़े हैं।" इतना कहते हुए उस टोली के लड़के अपने स्कूल के रास्ते हो लिए।

इसी तरह से वहां से जो भी गुजरता उस चुप्पी का राज जानने की कोशिश करता। बाद में पता चला की वहां पर दो गुटों के लोगों में आपसी लड़ाई हुई थी। यहां से चार-पाँच लोगों को घायल हालात में लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। इसीलिए यहां अभी भी पुलिस तैनात हैं, ताकि फिर कोई फसाद न हो जाए। 
 
मगर यहाँ अब पहले की अपेक्षा कम भीड़भाड़ है। फिर भी वहां से हर आता-जाता शख्स चुप्पी और लोगों  के इकट्ठा होने का राज जानने की कोशिश करता है। मगर कोई भी उस खाक़ी वर्दी के सामने घटना की हक़ीकत के बारे में बताने को तैयार नहीं था।

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