अक्सर हम इस पार्क में कुछ ना कुछ खेला करते हैं। इस पार्क को बने तीस साल हो गये हैं। पार्क के चारो और से निकलने वाले लोग जब इस पार्क को देखते हैं, तो उनहे बहुत बुरा लगता हैं। लेकिन जब उस पार्क में बच्चो की आवाज़े सुनाई देती हैं तो लोग उस पार्क की तरफ तरफ मुड़-मुड़ कर देखा करते हैं। इस पार्क के इरद-गिरद जो ओर छोटे-छोटे पार्क हैं उन सब में से हमारे माहौल्ले का ही पार्क सबसे बड़ा हैं। यह बहुत ही हरा-भरा पार्क हैं, और इसकी खासियत ये है कि यह औरतो के लिये आपसी बातचीत करने और कुछ समय साथ बिताने कि एक जगह है, और आदमियों के लिये भी बैठने कि जगह बन गई हैं।
पर औरते घर से ज्यादा बाहर नही आती हैं क्योंकि उन्हे अपने काम से ही फुरसत नही मिलती हैं तो वो बात क्या करे। पर हमेशा गर्मीयों में वो पार्क की रेलिंग पर कपड़े सुखाती नज़र आ जाती हैं, इस बहाने इस बीच उनकी आपस में बाते भी हो जाती हैं। उनको कहते सुना हैं कि ये पार्क बना है तो कपड़े यहाँ आराम से सुख जाते है और बच्चो को भी घर के पास खेलने कि जगह मिल जाती हैं, और हमे बाते करने का मौका भी तो यहा मिल जाता है। सर्दियो में भी वो यहा अपने शरीर को धुप की गरमाहट देती हुई यहा गप्पे लड़ाती नजर आती हैं।
कभी कभी तो वे सभी वही पर बैठ के खाना भी खा लेती हैं। आदमी तो गर्मी हो या सर्दी वही बैठे नज़र आते हैं, गर्मी में धुप से बचने के लिये पेड़ की छाव में बैठे दिखाई देते है तो सर्दी में धुप कि किरणो को खुली हवा कि तरह अपने शरीर पर गिरने देते हैं। उनहे तो कोई मना भी नही करता की वो अपने अपने घरो से ज्यादा समय पार्क में गुजारते हैं।
लेकिन देखा हैं कि मौसम के अनुसार पार्क के अन्दर के पेड़ भी अपना रूप बदल लेते हैं। जैसे सावन के महीने में बारिश होने पर छोटी-छोटी, नन्ही-नन्ही घास उगने लग जाती हैं। फरवरी के महीने में पेड़ अंगडाईया लेता हुआ सारे पत्ते झाड़ देता हैं, इसके बाद नए पत्ते आने लगते हैं। पहले इस पार्क में एक बिजली घर भी था। जिससे पानी का एक पाईप जुड़ा हुआ था, जहां से पेड़ो में पानी दिया जाता था। कभी कभी लाईट ना होने पर या पानी ना आने पर लोग पीने का पानी भी यही से भरा करते हैं। और इससे भी बातो का एक छोटा सा माहौल बनना चालु हो जाता था।
सावन के महीने में तो नज़ारा बहुत रंगीन हो जाता हैं। बच्चे पेड़ो पर रस्सी से झुले डालकर दिन भर झुलते हैं। 5-6 साल पहले वो बिजली घर भी तोड़ दिया गया और उसकी जगह दुसरा नल लगा दिया। अब पार्क में टेन्ट भी लगने लगे हैं। जिन पेड़ो की ड़ालियो पर कभी सावन पर हमारे झुले हुआ करते थे वो ड़ालिया भी गल गई हैं। अगर अब हम वहा अपना झुला डालते भी हैं तो ड़ालिया भी टुट-टुट जाती हैं। एक समय इस पार्क कि मरमत के लिये सरकारी आर्डर भी आया कुछ लोग जो पार्क बनाने आये थे, उन लोगो ने पहले अपने रहने के लिये छोटी-छोटी झुग्गियाँ डाल ली। और पीर पार्क के मरमत के काम में लग गये। एक साल के अन्दर पार्क को बना दिया, चारो तरफ पटरिया बनाई गई, कुछ बेन्च बैठने के लिये बनाये गये, रेलिंग और पार्क कि दिवारो को भी ठिक किया गया। पार्क का काम हो जाने के बाद वो लोग वहा से चले गये। इसके बाद लोग यही पर अपने घर की शादियों के, जन्मदिन के और पार्टी के टेन्ट यहां लगाने लगे, तो सरकार ने इस पार्क में समान लाने ले जाने के लिये एक बड़ा गेट भी लगवा दिया। पर जिस समय वो गेट बनना चालु हुआ था तो शादियों का समय था। हमेशा ही यहां टेन्ट लगने की दिक्कत से गेट बनाने का काम कुछ समय के लिये रुक गया था पर आज आखिर वो गेट बनकर तैयार हो ही गया।
- सिमरन
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