Thursday, May 19, 2011

एक शख्सियत ऐसी भी

हँसी, जो उनके चेहरे पर इस उम्र में भी देखने लायक होती। उम्र कोई 75 साल। हट्टा-कट्ठा शरीर। गोल-मटोल चेहरे पर जवानों जैसी लालिमा और मुँह में इक्के-दुक्के दाँत। 

गली-मोहल्ले में छोटे-बड़े किसी भी शख्स से  दूर से हाथ खड़ा करके 'राम-राम जी' कहते हुए मिलते हैं और पहेली के अंदाज में यह कहते हुए जोर से हँस पड़ते हैं, "अभी तो जवान हूँ। पचास साल और जीउंगा। जवानी का खाया-पिया है, कब काम आएगा।" ये कहकर वो अपने जवान होने का एहसास कराते हैं।

सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद पत्नी की जगह काम पर जाते हैं और पत्नी को घर में ही अराम करने देते हैं। वहाँ भी वो जल्दी से काम करके दस बजे तक लौट आते हैं और नहा-धोकर जब गली में दाखिल होते हैं तो उनकी हँसी के ठहाकों की गूंज से पता चल जाता हैं नानाजी काम से लौट आए हैं। 

गली में रिश्तों की सुलझन भी ऐसी कि गली-मोहल्ले में सभी छोटे-बड़े उन्हें नानाजी कहकर ही पुकारते हैं। नानाजी जहाँ पर भी बैठते हैं अपने ठहाकों की गूंज से अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। उनकी हँसी दूर-दूर तक सुनाई देती है।

घर में दाखिल होने से पहले वे एक बार ज़रूर खांसते हैं और 'नमस्ते' का जवाब 'राम-राम जी' कहते हुए बड़े आराम से देते हैं। जब वो अपनी बेटी के घर में दाखिल होते हैं तो उनके आने की आहट उस पर हल्के खांसने की आवाज़ ऊपर तक सुनाई देती है।  बेटी के घर घुसने से पहले घर की चौखट को दो-तीन बार जरूर चूमते हैं। शायद वो बेटी के घर को लक्ष्मी मानते हुए ऐसा करते हैं। 

उनकी शख्सियत ही ऐसी कि जितना खोलो उतना कम...।

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