यादों की एलबम को खोलते ही नज़र पड़ी उस बीते वक्त पर जब हम यहां नए-नए आए थे। यहां नए दोस्तों की टोली में शामिल होना ख़ास था। एक साथ गली में हम कई खेल खेला करते और नए-नए खेल ईजाद भी कर लेते।
हम दोस्तों की टोली को कई आवाज़ों का इंतज़ार रहता। चूरन वाले भैया हो या फिर पापड़ और आइस्क्रीम वाले अंकल। घर का छोटा-मोटा काबाड़ निकाल, उनकी आवाज़ों का पीछा करते हुए उन तक पहुँच ही जाते।
हम दोस्तों की टोली को कई आवाज़ों का इंतज़ार रहता। चूरन वाले भैया हो या फिर पापड़ और आइस्क्रीम वाले अंकल। घर का छोटा-मोटा काबाड़ निकाल, उनकी आवाज़ों का पीछा करते हुए उन तक पहुँच ही जाते।
भोंपू-भोंपू... हाथों में पच्चीस पैसे लेकर हम आइस्क्रीम वाले के पास पहुंच जाते और जीभ से छुआते हुए हम उसका रस चूसते। जैसे-जैसे आइस्क्रीम का ठंडा रस गले को तर करता वैसे गले के अन्दर भी ठंडक का एहसास बढ़ता जाता। कोई नरियल वाली चुस्की लेता तो कोई आम और सन्तरे के स्वाद वाली।
आइसक्रीम खाने के बाद हम एक दूसरे को अपनी अपनी जीभ दिखाते फिरते। "देख तेरी जीभ काली हो गई हैं" और "तेरी सन्तरी", ये कहते हुए हम सभी साथी खूब हंसते और हाथों पर तालियाँ थापते।
पर आज ये सब पीछे छूट गया हैं क्योंकि वक्त के साथ हम बड़े हो चले हैं। लेकिन आज भी फुरसत के वक्त में हम अपने इस एल्बम की तस्वीरों के पन्ने को पलटकर एक-एक याद को गाहे-बगाहे ताजा कर लेते हैं।
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